कोविड 2.0 में गांधी होते, तो क्या करते, क्या न करते!
पिछली सदी में मोहनदास करमचंद गांधी से अधिक प्रभावित करने वाला दूसरा व्यक्तित्व शायद ही कोई विश्व के इतिहास में दर्ज हुआ हो। महात्मा गांधी ने भी अपने जीवनकाल में महामारी को देखा था, तो प्रश्न वाजिब है कि कोरोना महामारी की जिस प्रलंयकारी दूसरी लहर से भारत गुजर रहा है, अगर वह होते तो उनका नजरिया क्या होता? पिछली सदी को इतिहास में गांधी की सदी ही कहा गया, यह सवाल ऐतिहासिक महत्व का न भी हो, पर तार्किक तो यकीनन है ही! भारतीय इतिहास और संस्कृति की सुदीर्घ परंपरा में विचारकों की लंबी फेहरिस्त है, पर गांधी के बाद शायद राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक वैचारिकी को इतने बहुआयामी स्तर पर, इतना गहरे तक प्रभावित करने वाला दूसरा विचारक नहीं ही दिखता है। इस लिहाज से गांधी की टाइम मशीनी, काल्पनिक उपस्थिति और उससे जुड़ी फेंटेसी की यह दुनिया किसी के लिए दिलचस्प हो सकती है, तो किसी-किसी के लिए खीज भरी भी।